24. Juli 2009 von Vyasa 14. Kapitel 14-07 Devanagari Bhagavad Gita 14. Kapitel 7. Vers रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम् | तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्गेन देहिनम् || १४ ७ ||