14. Oktober 2009 von Vyasa 12. Kapitel 12-17 Devanagari Bhagavad Gita 12. Kapitel 17. Vers यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति | शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः || १२ १७ ||