28. Januar 2011 von Vyasa 04. Kapitel 04-31 Devanagari Bhagavad Gita 4. Kapitel 31. Vers यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम् | नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य कुतोऽन्यः कुरुसत्तम || ४ ३१ ||