25. Oktober 2010 von Vyasa 06. Kapitel 06-06 Devanagari Bhagavad Gita 6. Kapitel 6. Vers बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः | अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत् || ६ ६ ||